राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार और आर्थिक स्वावलंबन पर बड़ा बयान दिया है। अमेरिकी टैरिफ विवाद के बीच उन्होंने स्पष्ट किया कि व्यापार को दबाव में नहीं बल्कि आपसी सहमति और समानता के आधार पर होना चाहिए। भागवत ने कहा कि भारत को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में टिके रहने के लिए अपने स्वदेशी उत्पादों और तकनीकों को बढ़ावा देना होगा।
दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में भागवत ने कहा, “विश्व व्यापार संबंध आपसी सम्मान और सहयोग पर आधारित होने चाहिए। दबाव डालकर किया गया व्यापार टिकाऊ नहीं हो सकता। भारत को आत्मनिर्भर बनने के लिए स्वदेशी अपनाना जरूरी है।” उन्होंने जोर देकर कहा कि स्थानीय उद्योगों, किसानों और लघु उद्यमों को प्राथमिकता देने से ही देश आर्थिक रूप से मजबूत बन सकेगा।
यह बयान ऐसे समय आया है जब अमेरिका ने भारत से आयात होने वाले कई उत्पादों पर अतिरिक्त टैरिफ लगाने की घोषणा की है। इससे भारतीय निर्यातकों और उद्योग जगत में चिंता बढ़ गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे हालात में स्वदेशी पर जोर देने से घरेलू उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा और आयात पर निर्भरता कम होगी।
भागवत ने यह भी कहा कि तकनीक और नवाचार के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता भारत के लिए अनिवार्य है। उन्होंने स्टार्टअप्स और युवा उद्यमियों को प्रोत्साहित करने की बात कही, ताकि देश विदेशी दबाव से मुक्त रहकर अपनी आर्थिक नीति तय कर सके।
कार्यक्रम में उन्होंने नागरिकों से अपील की कि वे घरेलू उत्पादों के उपयोग को प्राथमिकता दें। “हमारी जीवनशैली में स्वदेशी अपनाना केवल आर्थिक आवश्यकता नहीं, बल्कि राष्ट्रीय दायित्व है,” उन्होंने कहा।
केंद्र सरकार भी आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत कई योजनाओं को आगे बढ़ा रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले समय में वैश्विक व्यापार पर भू-राजनीतिक परिस्थितियों का प्रभाव बढ़ेगा, ऐसे में भारत को संतुलित रणनीति अपनाने की जरूरत होगी।