एशिया की राजनीति और वैश्विक कूटनीति के लिए एक बड़ा घटनाक्रम सामने आया है। चीन अगले हफ्ते बीजिंग में आयोजित होने वाले विक्ट्री डे परेड की मेजबानी करने जा रहा है। इस भव्य आयोजन में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और उत्तर कोरिया के सर्वोच्च नेता किम जोंग उन की मौजूदगी की पुष्टि हो चुकी है। इन दोनों नेताओं का चीन पहुंचना न केवल बीजिंग की सामरिक ताकत का प्रदर्शन है, बल्कि पश्चिमी देशों के लिए भी एक सीधा संदेश माना जा रहा है।
चीन का शक्ति प्रदर्शन
विक्ट्री डे परेड चीन के लिए केवल एक सैन्य आयोजन नहीं, बल्कि अपने पड़ोसियों और दुनिया को यह दिखाने का अवसर है कि वह अब वैश्विक शक्ति संतुलन का अहम केंद्र है। परेड में चीन अपनी नई पीढ़ी की मिसाइल प्रणाली, ड्रोन, लड़ाकू विमान और नौसैनिक क्षमताओं का प्रदर्शन करने वाला है। विश्लेषकों का मानना है कि बीजिंग इस आयोजन के ज़रिए अमेरिका और उसके सहयोगियों को चुनौती देने का संकेत देगा।
पुतिन की मौजूदगी का महत्व
रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते पुतिन अंतरराष्ट्रीय मंचों से काफी हद तक अलग-थलग पड़ चुके हैं। ऐसे समय में बीजिंग का निमंत्रण स्वीकार करना और परेड में शामिल होना रूस-चीन रिश्तों को और मजबूत करेगा। दोनों देशों के बीच पहले से ही ऊर्जा, रक्षा और व्यापार सहयोग बढ़ा है। पुतिन की मौजूदगी इस संदेश को और स्पष्ट करती है कि रूस पश्चिमी दबाव से टूटने वाला नहीं है।
किम जोंग उन का संकेत
उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन का परेड में शामिल होना भी चर्चा का विषय है। किम ने हाल ही में रूस और चीन के साथ अपने सामरिक सहयोग को बढ़ाने की कोशिशें तेज़ की हैं। उनका बीजिंग दौरा पश्चिमी देशों को यह दिखाता है कि उत्तर कोरिया भी एशियाई धुरी का हिस्सा बन रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम अमेरिका के खिलाफ साझा मोर्चा तैयार करने की ओर इशारा करता है।
पश्चिमी देशों की चिंता
अमेरिका और यूरोपीय संघ इस आयोजन को बारीकी से देख रहे हैं। उनका मानना है कि रूस, चीन और उत्तर कोरिया का एक साथ आना अंतरराष्ट्रीय राजनीति में नए गठजोड़ की शुरुआत हो सकती है। विशेष रूप से जब इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अमेरिका और उसके सहयोगी पहले से ही चीन के बढ़ते प्रभाव से चिंतित हैं, तब यह परेड और ज्यादा महत्व रखती है।
विश्लेषण और संभावनाएं
राजनीतिक जानकारों के अनुसार, विक्ट्री डे परेड केवल सैन्य ताकत का प्रदर्शन नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय संदेश देने का भी मंच है। चीन इस आयोजन से यह जताना चाहता है कि एशिया की राजनीति अब पश्चिम के इशारों पर नहीं चलेगी। वहीं, पुतिन और किम की मौजूदगी से यह भी संकेत मिलता है कि एशियाई धुरी आने वाले समय में और मज़बूत होगी।
चीन का विक्ट्री डे परेड इस बार केवल एक औपचारिक आयोजन नहीं रहेगा, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन में बदलाव का प्रतीक भी बनेगा। पुतिन और किम जोंग उन की मौजूदगी इसे और ऐतिहासिक बना देगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि पश्चिमी देश इस नए गठजोड़ का सामना कैसे करते हैं।