उत्तराखंड एक बार फिर प्राकृतिक आपदा की चपेट में आ गया है। राज्य के टिहरी और रुद्रप्रयाग जिलों में बादल फटने की घटनाओं ने भारी तबाही मचाई। पहाड़ों से पानी और मलबे का सैलाब अचानक नीचे की ओर दौड़ा, जिससे गांवों और कस्बों में अफरा-तफरी का माहौल बन गया। कई जगहों पर मकान ढह गए, सड़कें बह गईं और बिजली आपूर्ति पूरी तरह बाधित हो गई।
तबाही का मंजर
स्थानीय प्रशासन के मुताबिक तेज बारिश के बाद पहाड़ खिसकने लगे और कई जगहों पर भारी भूस्खलन हुआ। टिहरी जिले के कीर्तिनगर क्षेत्र में अचानक बादल फटने से कई घर मलबे में दब गए। वहीं, रुद्रप्रयाग में केदारनाथ हाईवे पर भारी भूस्खलन से यातायात ठप हो गया। आपदा प्रबंधन दल लगातार राहत और बचाव कार्य में जुटा है, लेकिन खराब मौसम और टूटी सड़कों के कारण मदद प्रभावित हो रही है।
जनहानि और नुकसान
अभी तक मिली जानकारी के अनुसार कई लोगों की मौत हो चुकी है जबकि दर्जनों घायल हैं। सैकड़ों लोग बेघर हो गए हैं और कई गांवों का संपर्क पूरी तरह टूट गया है। खेतों में खड़ी फसलें बर्बाद हो गई हैं और मवेशियों के मरने की भी खबरें सामने आ रही हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि बारिश इतनी तेज थी कि लोग संभल भी नहीं पाए और देखते ही देखते पूरा इलाका जलमग्न हो गया।
प्रशासन और सरकार की कार्रवाई
मुख्यमंत्री ने स्थिति पर तुरंत बैठक बुलाई और प्रभावित क्षेत्रों में राहत सामग्री भेजने के निर्देश दिए। एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीमें मौके पर तैनात की गई हैं। सेना को भी तैयार रहने के लिए कहा गया है ताकि जरूरत पड़ने पर हवाई बचाव कार्य शुरू किया जा सके। सरकार ने मृतकों के परिजनों को आर्थिक सहायता देने की घोषणा की है।
विशेषज्ञों का कहना है कि लगातार हो रहे बादल फटने और भूस्खलन के पीछे जलवायु परिवर्तन और अंधाधुंध विकास कार्य भी जिम्मेदार हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में सड़कों और निर्माण परियोजनाओं के चलते भूगर्भीय असंतुलन बढ़ रहा है। ऐसे में राज्य के लिए दीर्घकालिक आपदा प्रबंधन नीति बनाना बेहद जरूरी हो गया है।
उत्तराखंड इस वक्त गहरे संकट से गुजर रहा है। आपदा से जूझते लोग प्रशासन की ओर उम्मीद लगाए बैठे हैं, लेकिन यह हादसा एक बार फिर यह चेतावनी देता है कि पहाड़ों के संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र की अनदेखी आने वाले समय में और भी गंभीर खतरे खड़े कर सकती है।