राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने अपने हालिया बयान से राजनीतिक हलकों में नई हलचल पैदा कर दी है। नागपुर में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने स्पष्ट किया कि फिलहाल उनका रिटायरमेंट का कोई इरादा नहीं है। यह यू-टर्न इसलिए भी चर्चा में है क्योंकि कुछ समय पहले ही उन्होंने संकेत दिया था कि "उम्र के एक पड़ाव पर पहुंचकर जिम्मेदारियां नए हाथों को सौंप देनी चाहिए।"
बीजेपी पर सीधा तंज
भागवत ने अपने भाषण में बीजेपी पर भी अप्रत्यक्ष टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि “सत्ता में होना ही अंतिम लक्ष्य नहीं होना चाहिए, बल्कि सत्ता का इस्तेमाल समाज और राष्ट्रहित में होना चाहिए।” उनके इस बयान को बीजेपी के मौजूदा नेतृत्व पर कटाक्ष माना जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि लोकसभा चुनावों के बाद जिस तरह पार्टी के भीतर गुटबाजी और रणनीति पर सवाल उठ रहे हैं, भागवत का यह बयान उसी पृष्ठभूमि में देखा जा रहा है।
काशी-मथुरा पर 'हरी झंडी'
कार्यक्रम के दौरान भागवत ने अयोध्या के बाद काशी और मथुरा मुद्दों पर भी खुलकर बोलते हुए संकेत दिए। उन्होंने कहा कि “राम मंदिर केवल एक शुरुआत थी, अब सांस्कृतिक पहचान से जुड़े अन्य मुद्दों पर भी समाज को सजग रहना होगा।” इसे काशी और मथुरा विवादों पर अप्रत्यक्ष हरी झंडी माना जा रहा है। इससे स्पष्ट है कि आने वाले दिनों में ये मुद्दे राष्ट्रीय राजनीति में फिर से सुर्खियों में रहेंगे।
सियासी हलचल तेज
भागवत के इस रुख ने विपक्ष को भी मौका दे दिया है। कांग्रेस और अन्य दलों ने कहा कि संघ सीधे तौर पर बीजेपी के एजेंडे को दिशा देने का काम कर रहा है। वहीं बीजेपी के भीतर भी यह चर्चा छिड़ गई है कि भागवत का यह बयान पार्टी की रणनीति और आगामी चुनावी एजेंडे पर असर डाल सकता है।
मोहन भागवत का रिटायरमेंट पर यू-टर्न, बीजेपी पर सीधा तंज और काशी-मथुरा पर खुला संकेत—ये तीनों बातें आने वाले महीनों में भारतीय राजनीति की दिशा तय कर सकती हैं। यह स्पष्ट हो गया है कि संघ और बीजेपी के रिश्ते में नई खींचतान की संभावना है और हिंदुत्व आधारित मुद्दे फिर से राष्ट्रीय विमर्श के केंद्र में लौट सकते हैं।