चीन के तियानजिन शहर में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) का वार्षिक शिखर सम्मेलन शुरू हो गया है। इस बार का सम्मेलन इसलिए खास माना जा रहा है क्योंकि मंच पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग आमने-सामने होंगे। अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और बदलते वैश्विक समीकरणों के बीच यह मुलाकात नई रणनीतिक दिशा तय कर सकती है।
वैश्विक तनाव के बीच अहम बैठक
यूक्रेन युद्ध, एशिया-प्रशांत क्षेत्र में बढ़ती सैन्य सक्रियता और अमेरिका-चीन प्रतिस्पर्धा के चलते पूरी दुनिया की निगाहें इस सम्मेलन पर टिकी हैं। रूस पर पश्चिमी प्रतिबंधों का असर लगातार गहराता जा रहा है और चीन अपनी अर्थव्यवस्था को स्थिर करने में जुटा है। वहीं भारत वैश्विक दक्षिण की आवाज़ बनकर उभर रहा है। ऐसे में मोदी–पुतिन–शी की बैठक यह संकेत दे सकती है कि आने वाले समय में एशिया का शक्ति संतुलन किस दिशा में जाएगा।
भारत की प्राथमिकताएँ
प्रधानमंत्री मोदी ने रवाना होने से पहले कहा कि भारत इस मंच का उपयोग क्षेत्रीय सुरक्षा, आतंकवाद-निरोध और कनेक्टिविटी जैसे मुद्दों पर रचनात्मक चर्चा के लिए करेगा। साथ ही भारत चीन के साथ सीमा विवाद और रूस के साथ ऊर्जा सहयोग को लेकर संतुलित दृष्टिकोण अपनाना चाहता है। भारत यह भी चाहता है कि SCO आतंकवाद के मुद्दे पर केवल औपचारिकता न निभाए बल्कि ठोस कदम उठाए।
रूस और चीन की रणनीति
पुतिन इस मंच को पश्चिमी देशों के विकल्प के रूप में देख रहे हैं। वे चाहते हैं कि एशियाई देशों के बीच व्यापार और सुरक्षा सहयोग गहराए ताकि रूस की अंतरराष्ट्रीय अलग-थलग स्थिति कुछ हद तक सुधरे। दूसरी ओर, चीन इस सम्मेलन के जरिए अपनी आर्थिक पहल “बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव” को और मजबूत करने के प्रयास में है। हालांकि भारत अब तक इस परियोजना को लेकर अपनी आपत्तियों पर अड़ा हुआ है।
SCO शिखर सम्मेलन केवल क्षेत्रीय सहयोग का मंच नहीं, बल्कि यह मौजूदा अंतरराष्ट्रीय राजनीति का आईना भी है। मोदी, पुतिन और शी की त्रिकोणीय मुलाकात से यह स्पष्ट होगा कि एशिया में गठजोड़ और प्रतिस्पर्धा की नई रूपरेखा कैसी होगी। दुनिया की नजरें इस पर टिकी हैं कि क्या यह सम्मेलन सहयोग की नई शुरुआत करेगा या मौजूदा तनाव और गहराएंगे।