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संपादकीय

The Election Commission of India is accused of complicity in vote theft, raising serious questions about the fairness of democracy.: भारत में चुनाव आयोग पर ‘वोट चोरी’ में मिली-भगत के आरोप ! लोकतंत्र की निष्पक्षता पर उठते गंभीर सवाल

September 20, 2025 06:33 PM

 भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़      

भारत का लोकतंत्र दुनिया का सबसे बड़ा और जटिल लोकतांत्रिक तंत्र माना जाता है। लेकिन हाल ही में चुनाव आयोग की भूमिका पर उठ रहे सवालों ने इस व्यवस्था की निष्पक्षता और पारदर्शिता को कटघरे में खड़ा कर दिया है। ताज़ा आरोपों के अनुसार, कुछ राजनीतिक दलों और नागरिक संगठनों ने दावा किया है कि आयोग चुनावों के दौरान "वोट चोरी" और गड़बड़ी में मिलीभगत करता दिख रहा है। यह आरोप न केवल लोकतांत्रिक संस्थानों की साख पर सवाल खड़े करते हैं बल्कि मतदाताओं के विश्वास को भी गहरा झटका देते हैं। दूसरी ओर चुनाव आयोग इन आरोपों को निराधार बता रहा है। याद रहे भारत में आम और विधानसभा चुनावों के दौरान हमेशा से पारदर्शिता और निष्पक्षता की बहस चलती रही है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन, वीवीपैट और मतगणना प्रक्रिया को लेकर विवाद बढ़े हैं। विपक्षी दल बार-बार आरोप लगाते रहे हैं कि चुनाव आयोग सत्ताधारी दल के दबाव में काम करता है। 2025 में हुए उपचुनावों और कुछ राज्यों की विधानसभा चुनावों में भी ऐसे ही आरोप सामने आए, जिनमें कहा गया कि आयोग ने शिकायतों पर गंभीरता से कार्रवाई नहीं की। आइये समझते हैं चुनाव आयोग की भूमिका और जिम्मेदारी के बारे में। चुनाव आयोग का गठन संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत किया गया है। इसका मुख्य कार्य चुनावों का निष्पक्ष संचालन सुनिश्चित करना है। आयोग को स्वतंत्र और स्वायत्त संस्था माना जाता है, जिसे राजनीतिक दबावों से मुक्त रहकर काम करना चाहिए। लेकिन जब आयोग पर "वोट चोरी" में मिलीभगत के आरोप लगते हैं, तो उसकी विश्वसनीयता पर गंभीर संकट खड़ा हो जाता है। गर हम वोट चोरी के आरोपों की बात करें तो वोट चोरी यानी मतदाता की असली इच्छा के विपरीत चुनाव परिणामों को प्रभावित करना किसी भी लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा है। यदि मतदाता को यह विश्वास नहीं होगा कि उसका वोट सुरक्षित है और उसकी गिनती निष्पक्ष ढंग से हुई है, तो लोकतंत्र का पूरा ढांचा कमजोर पड़ जाएगा। भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में यह स्थिति और भी खतरनाक है, क्योंकि यहां का लोकतांत्रिक मॉडल दुनिया के लिए उदाहरण माना जाता है। यह सच है कि ईवीएम और वीवीपैट को लेकर लंबे समय से संदेह जताए जाते रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि मशीनें तकनीकी रूप से छेड़छाड़ से मुक्त नहीं हैं। कई बार मतदान केंद्रों पर वीवीपैट स्लिप और वोटिंग पैटर्न में अंतर की शिकायतें दर्ज की गई हैं। हालांकि चुनाव आयोग लगातार यह दावा करता आया है कि ईवीएम पूरी तरह सुरक्षित हैं और इनसे छेड़छाड़ संभव नहीं है। लेकिन बार-बार उठते संदेह आयोग की निष्पक्षता पर गहरे सवाल खड़े करते हैं। दूसरी ओर विपक्षी दलों का कहना है कि चुनाव आयोग को अपनी पारदर्शिता साबित करने के लिए अधिक कठोर कदम उठाने चाहिए। कई दलों ने मांग की है कि कम से कम 50 प्रतिशत वीवीपैट स्लिप का मिलान ईवीएम वोटों से कराया जाए। वहीं, कुछ नागरिक संगठन चाहते हैं कि आयोग मतगणना प्रक्रिया में पूरी तरह से डिजिटल रिकॉर्डिंग और सार्वजनिक निगरानी की व्यवस्था करे। इन संगठनों का तर्क है कि जब तक चुनावी प्रक्रिया पारदर्शी और जनता के भरोसे के अनुकूल नहीं होगी, तब तक लोकतंत्र का विश्वास डगमगाता रहेगा। हालांकि आयोग ने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया है। उसका कहना है कि चुनावी प्रक्रिया में पूरी पारदर्शिता बरती जाती है और हर स्तर पर राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाता है। आयोग का तर्क है कि यदि किसी तरह की गड़बड़ी होती तो अदालतें और निगरानी एजेंसियां इसकी पुष्टि करतीं। फिर भी, आयोग पर सवाल उठना इस बात का संकेत है कि जनता के मन में संदेह गहराता जा रहा है। इस में कोई दो राय नहीं है कि भारत की न्यायपालिका ने कई बार चुनाव आयोग को उसकी संवैधानिक जिम्मेदारी याद दिलाई है। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने आयोग से पारदर्शिता और निष्पक्षता पर समझौता न करने की चेतावनी दी है। हाल ही में अदालत ने कहा कि "चुनाव आयोग की निष्पक्षता लोकतंत्र की आत्मा है। यदि यह संस्था कमजोर पड़ती है तो लोकतंत्र का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।" यदि चुनाव आयोग पर लगने वाले आरोपों की अनदेखी की जाती रही, तो इसका असर सीधा मतदाता के विश्वास पर पड़ेगा। लोग मतदान केंद्र तक जाने से हिचकिचा सकते हैं क्योंकि उन्हें लगेगा कि उनके वोट का कोई महत्व नहीं। यह स्थिति लोकतांत्रिक भागीदारी को कमजोर करेगी और देश में राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ा सकती है। आइये इसके हल पर गौर करें। इन आरोपों से निपटने के लिए चुनाव आयोग को पारदर्शिता बढ़ाने के ठोस कदम उठाने होंगे। वीवीपैट स्लिप का अधिक व्यापक मिलान करना। चुनावी प्रक्रिया को लाइव स्ट्रीमिंग और थर्ड पार्टी ऑडिट के दायरे में लाना। आयोग के अधिकारियों की नियुक्ति प्रक्रिया को और अधिक स्वतंत्र व पारदर्शी बनाना। नागरिक संगठनों और विपक्षी दलों की शिकायतों को तुरंत और निष्पक्ष रूप से संबोधित करना। अंत में कह सकते हैं कि भारत का लोकतंत्र केवल संवैधानिक प्रावधानों पर नहीं, बल्कि जनता के विश्वास पर टिका है। चुनाव आयोग पर उठ रहे "वोट चोरी" के आरोप यह संकेत देते हैं कि इस विश्वास में दरार पड़ रही है। यदि इस संकट का समय रहते समाधान नहीं किया गया तो लोकतंत्र की नींव हिल सकती है। इसलिए आयोग, राजनीतिक दलों और नागरिक समाज को मिलकर पारदर्शी, निष्पक्ष और जवाबदेह चुनावी प्रणाली की दिशा में ठोस पहल करनी होगी। यही भारत के लोकतंत्र की वास्तविक शक्ति और भविष्य की गारंटी होगी।

 

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